इंसानों की बढ़ती जनसंख्या पृथ्वी के लिए एक बहुत बड़ा चैलेंज है। पृथ्वी पर प्रकृतिक आपदाओं का लगातार आते रहना और जलवायु परिवर्तन ये संकेत देता है की पृथ्वी का विनाश जल्द हि होगा।
इस दुनिया के कई वैज्ञानिकों ने दूसरे ग्रह पर बसने का विकल्प दिया है। NASA भी इंसानों के रहने के लिए दूसरे ग्रह की खोज कर रहा है।
वैज्ञानिको के दिमाग़ मे एक हि ग्रह ऐसा है जिसकी जलवायु पृथ्वी से थोड़ी बहुत मिलती है और उस ग्रह का नाम है मंगल ग्रह। इसी वजह से पिछले कुछ सालों से लगभग सभी देश मंगल ग्रह् पर अपना मिशन भेज रहे हैं।
सबसे पहले ये चेक करना ज़रूरी है की क्या मंगल ग्रह की जलवायु मे इंसान ज़िंदा रह पाएंगे? ELON MUSK ने भी मंगल ग्रह पर जाने के लिए अपना रॉकेट बना लिया है। और वहाँ कृत्रिम गर्भ की वजह से बहुत से इंसानों को बसाने का प्लान और, जिससे ये पता लगाया जा सकता है की वहाँ की जलवायु मे रहना सम्भव है या नही।
किसी भी ग्रह पर बसने के लिए सबसे पहले इंसानों को सबसे पहले ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ेगी और ऑक्सीजन पेड़ पौधे से आते है, लेकिन पृथ्वी के अलावा अभी तक किसी और ग्रह पर पेड़ पौधे नही पाए गये हैँ।

इसीलिए अगर मंगल पर पौधे उगा दिये जाए तो वहाँ का वातावरण बदल सकता है और इंसानों के रहने के लायक बनाया जा सकता है।
मंगल के अलावा चांद भी एक ऐसा जगह है जहाँ का वातवरण कुछ पृथ्वी जैसा ही है। लेकिन इंसानों के रहने के लिए ऑक्सीजन और पानी की कमी है और इस कमी को पेड़ पौधे लगा कर किया जा सकता है।
किस देश ने पहली बार चांद की मिट्टी पर उगाए पौधे।
इन सब को मद्देनज़र रखते हुए हुए चीन ने चांद पर लोगो को बसाने के लिए अपनी कोशिशे शुरु कर दी है। साल 2019 के शुरुआत मे ही चीन ने इतिहास रच दिया जब उनका Chang’e-4 मिशन जो की चन्द्रमा पर भेजा गया था सफलतापूर्वक लैंड किया।
इस मिशन का उद्देश्य यही था की चांद पर पौधे उगाने की कोशिश करना। Spacecraft अपने साथ एक मिनी Biosphere लेकर आया था जिसे Lunar Micro Ecosystem का नाम दिया गया था। ये एक छोटा सा सिलिंडर था जो पृथ्वी के वातावरण की तरह चांद के बहुत हि छोटे हिस्से पर बनाने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन एक फर्क था चांद पर gravity की कमी थी और Cosmic rays आ रही और, तो ये देखना था की कम gravity और cosmic rays की उपस्थिति मे पौधे उगते है या नही।
मिनी biosphere मे बहुत से पौधों को रोपण हुआ जैसे,आलू, cotton, और कई दूसरे तरह के पौधे। ये एक्वेरिमेंट काफी सक्सेसफुल रहा और सबसे पहले cotton की बीज मे से पौधे निकलने लगे फिर आलू और दूसरे पौधे मे से पौधे निकलने लगे।
लेकिन 14 दिन के बाद सारे पौधे मर गये। इन पौधों के मरने के बहुत ही सिंपल रीज़न है। चांद के एक हिस्से पर 14 दिन तक ही सुरज की रौशनी आती है और फिर 14 दिन तक रौशनी बिल्कुल नही आती है क्यूंकि ये 14 दिनों तक चांद के बिल्कुल पिछले हिस्से मे होता है जिससे उसपर सूरज की किरणे नही पड़ती है। और 14 दिनों तक सूरज की किरणे नही पड़ने के कारण पौधे प्रकाश सन्श्लेषण नही कर पाते हैँ।
अब देखना होगा की वैज्ञानिक चांद को रहने के लिए सक्षम बना पाते हैँ की नही क्यूंकि अभी तक ये मुमकिन नज़र आ रही है लेकिन ये ज़माना है विज्ञान और टेक्नोलॉजी का यहाँ कुछ भी मुमकिन है।
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