अगर हम प्राचीन काल के इतिहास मे झाँके तो महिलाओं की सम्मान शुरुआती दौर देखने को मिलता है, लेकिन वो दौर बहुत ही छोटे समय के लिए था। उसके बाद ब्रह्मणवाद धीरे धीरे चरम सीमा पर पहुँच गयी जिसके बाद महिलाओं के सम्मान मे कमी आने लगी।
दक्षिण भारत के कुछ राजाओं के दौर मे महिलाओं ने अपने सम्मान का आनंद लिया है, उत्तर भारत मे गुप्ता वंश के राजाओं ने महिलाओं की सम्मान के लोए ठोस कदम उठाये थे। लेकिन फिर से जैसे जैसे हमारा देश ग़ुलाम बनता गया वैसे वैसे हमारे देश की महानता भी पश्चिमी सभ्यताओं के पीछे छुप गया। लोग अपनी पुरानी रीति रीवाज को फिर से दूसरे तरीको से दुहराने लगे।
दहेज़ कुछ उसी पुरानी रिवाजों मे से एक है जिसमे लड़की वाले दुल्हन को साथ मे जेवर, पैसे और ज़रूरत के बहुत से समान शादी के समय देते हैं।
भारत देश मे शुरु से ही हिन्दु बहुसंख्यक रहे हैं इसलिए हिन्दु रीति रिवाज काफी प्रसिद्ध है। हिन्दु मान्यताओं के अनुसार एक लड़की का अपने पिता के सम्पत्ति पर अधिकार नही होता है, इसलिए जब एक पिता अपनी बेटी की शादी करता है तो अपने हैसियत के हिसाब से अपने सम्पत्ति का कुछ भाग शादी के समय अपने बेटी को दे देता है।
दहेज़ का एक और कारण ये है कि वो महिलाएं जो ज़्यादा दहेज़ के साथ ससुराल मे जाती है उनका सम्मान ज़्यादा होता है इसलिए एक बाप होने के नाते पिता हमेशा ज़्यादा से ज़्यादा दहेज़ देने कि कोशिश करता है।
लेकिन आजकल के दौर मे लड़के वाले अपनी पसंद की समान लड़की वाले से मांगते है कई बार एक पिता को अपनी हैसियत् से ज्यादा दहेज़ देना पड़ रहा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार आज से 90 साल पहले भारत की 40 प्रतिशत शादियों मे दहेज़ दिया जाता था, जिसमे जबरन दहेज़ वाले का मामला बहुत कम देखने को मिलता था, लेकिन साल 2020 के एक आंकड़े के मुताबिक आज भारत मे होने वाले 90 प्रतिशत शादियों मे दहेज़ दिया जाता है और साथ ही मे जबरन दहेज़ के मामले मे भी वृद्धि हुई है।
अक्सर शादियों मे ये देखा जाता है कि लड़की कि शादी मे लड़को कि शादी के बनिस्पत ज्यादा खर्चे होते हैं। इस पर हुए एक रिसर्च मे ये पाया गया कि एक लड़की कि शादी कि खर्च लड़के कि शादी के खर्च का सात गुना होता है।
ये एक बहुत बड़ा कारण है कि लोग बच्चियों को जन्म देना नही चाहते हैं और इसलिए हमारे भारत मे लिंग अनुपात मे काफी भेदभाव है।
भारत मे हिन्दु रिवाज से निकली हुई दहेज़ प्रथा भारत के लगभग सभी धर्म और समुदाओं मे फैल गयी है, जिसके वजह से भारत के कई पड़ोसी देशों मे भी दहेज़ प्रथा देखने को मिलती है क्यूंकि कभी ना कभी वो सभी देश भारत का हिस्सा रह चुके हैं इसलिए दहेज़ प्रथा वहाँ भी देखने को मिलती है।

कैसे खत्म होगी दहेज़ प्रथा?
दहेज़ प्रथा को समझने के लिए सबसे पहले हमारे देश के नागरिकों का शिक्षित होना ज़रूरी है, क्यूंकि जिन जगहों पर ज़्यादा शिक्षा नही है वहाँ ज़्यादा दहेज़ देखने को मिलता है। सरकार को भी दहेज़ लेने वालो पर सख्त कदम उठानी चाहिए। साथ ही मे अपने बच्चों को बचपन से ही दहेज़ ना ही लेने और ना ही देने कि प्रेंड़ना दे।
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