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क्या होगा जब इंसान को पसीना आना बंद हो जायेगा।

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जब भी हम मेहनत का काम करते हैँ तो हमे पसीने आने लगते हैँ, जैसे चलना, दौड़ना, या फिर कोई मेहनत वाला काम करना। पसीने की वजह से शरीर से बदबू आने लगती है, इसलिए लोगो को पसीना आना पसंद नही है, लेकिन क्या होगा जब आपको पसीना आना ही बंद हो जाये?

आखिर क्यों आते हैँ पसीने?

हमारा शरीर तब तक ठीक रहता है जब तक हमारे शरीर का तापमान सामान्य रहता है। अगर यही तापमान ज़्यादा हो जाता है तो हम इसे बुखार के नाम से जानते हैँ।

जब भी हमारे शरीर के तापमान मे वृृद्धि होने लगती है तो शरीर में मौजूद स्वेट ग्लैंड तापमान को नियंत्रण करने के लिए सक्रिय हो जाता है और हमारे शरीर मे मौजूद अंदरूनी अंगों से पानी को सोखकर हमारे त्वचा के ऊपरी हिस्से पर पहुंचा देते है, जिससे हमारे शरीर के तापमान नही बढ़ता है।

पसीने होने के फायदे क्या है?

वैसे तो पसीने होने की कई वजहें होती है लेकिन आमतौर पर पसीने गर्मी मे ज़्यादा निकलते हैँ। और इसके फायदे कई है।

1. पसीने से शरीर के तापमान समान रहता है जिससे बेहोश होने से इंसान बच जाता है।
2. पसीने के साथ शरीर के अंदरूनी अंगों से विषैले तत्व बाहर निकल जाते हैँ, जिससे शरीर के अंगों की सफाई हो जाती है।
3. बार बार पसीने निकलने से त्वचा मे स्वस्थ रहता है और साथ ही मे निखार भी आने लगता है।
4. हमारे शरीर मे इम्युन सिस्टम अच्छा बना रहता है। जिससे शरीर जल्दी बीमार नही पड़ता है।

पसीना नहीं निकलने से क्या होता है?

अगर पसीना नही आये तो हमारे शरीर की तापमान बढ़ने के कारण हार्ट स्ट्रोक आ सकती है और इसके साथ ही इंसान बेहोश हो कर मर भी सकता है। एक छोटा सा मटर के दाने के बराबर का पसीना हमारे शरीर के 1 लीटर खून के गर्मी को कम कर देता है। जब बहुत ज़्यादा गर्मी पड़ती है तो हमारा शरीर एक दिन मे 10 लीटर तक पसीना निकाल सकता है।

क्या होगा जब इंसान को पसीना आना बंद हो जायेगा।

जिन लोगो को पसीना नही होता है ऐसे लोगो को एक डिसऑर्डर होता है जिसके वजह से उनका शरीर पसीना नही बना पाता है। इस डिसऑर्डर को Hypohidrosis के नाम से जानते हैँ। ऐसे लोगों को काफी दिक्कत होती है,क्यूंकि ज़्यादा गर्मी मे उनका दिमाग़ काम करना बंद कर देता है और बेहोश होने लगते हैँ। और ऐसे लोग ज़्यादा चल फिर भी नही सकते हैँ।

एक दूसरा डिसऑर्डर है Hyperhydrosis जिसमे लोगों को ज़्यादा पसीने आते हैँ। लेकिन ये लोगों के खतरनाक नही होते हैँ और 100 मे से लगभग हर दूसरे या तीसरे व्यक्ति मे ये डिसऑर्डर पाया जाता है। ऐसे मे लोगों को आम लोगों के हिसाब से ज़्यादा पानी पीनी चाहिए।

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