Metaverse: मेटावर्स टेक्नोलॉजी का आइडिया कैसे शुरू हुआ ? और कैसे बदलेगा इंटरनेट इस्तेमाल का तरीका?

फेसबुक का नया नाम Meta यानी मेटावर्स है। मेटावर्स का मतलब होता है वर्चुअल रियलिटी। आसान शब्दों में कहें तो एक आभासी दुनिया (Virtual World)।

इस दुनिया में आप ट्रैवल, शॉपिंग से लेकर दोस्तों-रिश्तेदारों से मिल सकेंगे। एक ऐसी ऑनलाइन दुनिया, जहां लोग वर्चुअल रियलटी(Virtual Reality) का इस्तेमाल करके वर्चुअल वर्ल्ड का एक्सपीरिएंस कर सकेंगे। वर्चुअल रियलिटी का मजा आप कैसे ले पाएंगे?

इस बात को समझाने के लिए मेटावर्स टेक्नोलॉजी का कॉन्सेप्ट समझना जरूरी है। आइये जानते हैं, मेटावर्स आखिर होता क्या है? कैसे काम करता है? इससे इंटरनेट इस्तेमाल करने का तरीका कैसे बदलेगा? और मेटावर्स टेक्नोलॉजी का आइडिया आया कहां से…

Metaverse Technology : मेटावर्स टेक्नोलॉजी क्या होता है?

मेटावर्स एक तरह की मॉडर्न टेक्नोलॉजी है जिस में मेटावर्स एक आभासी दुनिया होगी । इससे आप वर्चुअल आइंडेंटिटी (Virtual Identity) के जरिए डिजिटल वर्ल्ड में प्रवेश कर सकेंगे। और घूमने, शॉपिंग करने से लेकर दोस्तों-रिश्तेदारों से साथ रियल टाइम में टाइम स्पेंड कर पाएंगे।

काम कैसे करता है मेटावर्स?

ऑगमेंटेड रियलिटी (Augmented Reality), वर्चुअल रियलिटी (Virtual Reality), मशीन लर्निंग (Machine Learning), ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी (Blockchain Technology) और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial Intelligence) जैसी कई टेक्नोलॉजी के कॉम्बिनेशन से मेटावर्स बना है। और इन सब टेक्नोलॉजी के जरिए ही आप भी इसका आनंद ले सकेंगे।

मेटावर्स टेक्नोलॉजी

कैसे बदलेगा इंटरनेट इस्तेमाल करने का तरीका?

मेटावर्स से इंटरनेट इस्तेमाल करने का एक्सपीरियंस पूरी तरह अलग होगा। वर्चुअल वर्ल्ड में आप वो सब कुछ कर सकेंगे, जो रियल्टी में करते आये हैं। जैसे कि अगर आपको शॉपिंग पर जाना है लेकिन, वक्त नहीं है और कोई चीज खरीदना चाहते हैं तो भी संभव होगा।

मान लीजिए आपको मार्केट से कोई भी प्रोडक्ट खरीदनी है तो आप बाजार जाएंगे, मॉडल देखेंगे उसे इस्तेमाल करने का तरीका समझेंगे और फिर उसे घर लाएंगे। लेकिन, यहाँ मेटावर्स टेक्नोलॉजी को अच्छे से इस्तेमाल कर सकेंगे।

इसके जरिए आप वर्चुअल वर्ल्ड में किसी भी दुकान से अपने पसंदीदा चीजों को पसंद कर पाएंगे और फिर डिजिटल करंसी या क्रीप्टो करेंसी के जरिए उसे खरीद सकेंगे। इसके बाद वो प्रोडक्ट आपके दिए गए पते पर डिलिवर कर दिया जाएगा। मतलब आपने शॉपिंग वर्चुअल की, लेकिन शॉपिंग बिल्कुल रियल होगी।

मेटावर्स का आइडिया कहां से आया?

वर्चुअल रियलिटी की एडवांस या नेक्स्ट लेवल, मेटावर्स है। अभी तक बहुत से फिल्मों या काल्पनिक नॉवेल्स में भविष्य की दुनिया दिखाया जाता था। इस टेक्नोलॉजी से अब लोगों को चीजें छूने और स्मेल करने का रियल टाइम एक्सपीरियंस ले पाएंगे।

मेटावर्स शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल साइंस फिक्शन नॉवेल ‘स्नो क्रैश’ में किया था । ये नॉवेल लेखक नील स्टीफेंसन ने 1992 में पब्लिश की थी । यहीं से इसकी शुरुआत की बात कही गई है । इस नॉवेल में वर्चुअल वर्ल्ड में रियल लोगों के अवतार दिखाए गए थे।

कब तक मिलेगा मेटावर्स का एक्सपीरियंस?

Facebook के ऑफिशियल ब्लॉग के मुताबिक, अभी मेटावर्स (Metaverse) बनाने के शुरुआती चरण में है। इसे पूरी तरह से सबको एक्सपीरियंस देने में 10 से 15 साल का वक्त लग सकता है । मेटावर्स को कोई एक कंपनी तैयार नहीं कर सकती । बल्कि, अलग-अलग टेक्नोलॉजी का बहुत बड़ा सा जाल है, जिस पर कई कंपनियां पार्टनरशिप के तहत मिलकर काम कर रही हैं और फिर शेयरिंग से ही सबको इसका एक्सेस मिलेगा।

कौन सी कंपनियां बना रही हैं मेटावर्स?

मेटावर्स किसी एक चीज या टेक्नोलॉजी से नहीं बनेगा। इसमें सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, एसेट क्रिएशन, इंटरफेस क्रिएशन, प्रोडक्ट और फाइनेंशियल सर्विसेस जैसी कई कैटेगरी शामिल हैं ।

फेसबुक के अलावा अल्फाबेट (गूगल की पैरेंट कंपनी), Apple, Snapchat जैसी बड़ी कंपनियां मेटावर्स पर काम कर रही हैं। एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक, साल 2035 तक मेटावर्स की इंडस्ट्री 74.8 लाख करोड़ रुपए की हो सकती है।

प्राइवेसी को लेकर अब भी सवाल?

मेटावर्स के आने से प्राइवेसी कितनी रहेगी, ये सवालों के घेरे में है । इसको लेकर दुनिया में बहस भी छिड़ी है। क्योंकि, अगर कोई यूजर्स डिजिटली इसका एक्सीपीरियंस लेगा तो उसकी निजता की सुरक्षा की गारंटी कौन लेगा इस पर अभी कुछ साफ नहीं हुआ है।

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