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क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस सालों बाद भी जिंदा रहे थे? जाने सुभाष चंद्र बोस के बारे में अहम जानकारियां। Subhas Chandra Bose.
बहुत पुरानी कहावत है कि अंत भला तो सब भला इसका मतलब यह है कि अगर आप कोई भी काम करना चाहते हैं चाहे आप कितनी भी मेहनत की हो अगर आपको अंत में सफलता मिल जाती है तो आपके संघर्ष को याद किया जाएगा।
कुछ ऐसा ही हुआ था नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत को आजादी दिलाने के लिए आजाद हिंद फौज का निर्माण किया था, जिसको बनाने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जापान और जर्मनी देश से बहुत ज्यादा मदद लिए थे।
लेकिन 16 अगस्त 1945 को हिटलर आत्महत्या कर लेता है और जापान परमाणु बम गिरने का वजह से पूरी तरह बर्बाद हो चुका था इसका मतलब यह दोनों देश अब सुभाष चंद्र बोस को मदद नहीं कर सकती थी। बहुत से इतिहासकार इनको भारत के सबसे महान क्रांतिकारी मानते हैं लेकिन बस इनका सोचने का तरीका और उसे अलग था और दूसरी बात यह है कि अंत में इन्हें सफलता हासिल नहीं हुई।
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सुभाष चंद्र बोस की जीवनी। Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में उड़ीसा राज्य के कटक में हुआ था। उसे समय उड़ीसा बंगाल का हिस्सा हुआ करता था। और वह एक बंगाली वकील के बेटे थे। शुरुआती पढ़ाई करने के बाद नेताजी के माता-पिता ने उनको भारतीय सिविल सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भेज दिया। 1920 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास भी कर लिया लेकिन अप्रैल 1921 में भारत में उत्पन्न उथल-पुथल के कारण उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और भारत वापस आ गए।
भारत में आने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में साथिया जिसके वजह से उनको जेल भी जाना पड़ा। साल 1924 में उन्हें कोलकाता नगर निगम के मुख्य अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया।
लेकिन जल्दी अंग्रेजी सरकार ने उनको बर्मा भेज दिया क्योंकि उन्हें शक था कि वह क्रांतिकारियों का साथ दे रहे हैं। साल 1927 में उन्हें बर्मा से रिहा किया गया और भारत में वापस आने के बाद बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
साल 1930 में जब गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस आंदोलन को अंडरग्राउंड लेवल पर लीड कर रहे थे। लेकिन फिर से उनको पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। जेल में रहने के बावजूद उन्हें कोलकाता का मेयर चुना गया।
जब जेल में ही उनको टीबी की बीमारी हो गई अंग्रेजों ने इलाज करने के लिए उनको यूरोप भेज दिया। साल 1936 में वह यूरोप से भारत वापस लौटे लेकिन उसके 1 साल बाद उनको फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और फिर उन्हेंअगले साल छोड़ दिया गया।
साल 1938 और 1939 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने लेकिन कांग्रेस पार्टी के मेंबर से मतभेद होने के कारण वह कांग्रेस से अलग हो गए और अपना एक अलग संस्था बनाया जिसका नाम फारवर्ड ब्लाक (Forward Bloc) था। 26 जनवरी 1941 को वह भारत से काबुल, मास्को होते हुए जर्मनी पहुचे।
जर्मनी में रह रहे भारतीय नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सपोर्ट करने लगे जनवरी 1942 में जर्मनी की मदद से आजाद हिंद रेडियो की शुरुआत की।
1943 में वह जर्मनी से टोक्यो की तरफ रवाना हो गए जहां पर जुलाई में उन्हें इंडियन इंडिपेंडेंस मूवमेंट की अध्यक्ष के रूप में चुना गया। वह उन्होंने 40000 ट्रैनड सिपाहियों को तैयार करने में लग गए। और इस आर्मी को उन्होंने नाम दिया आजाद हिंद फौज।
18 मार्च 1944 को आजाद हिंद फौज भारत पहुंची, लेकिन अंग्रेजी सेना भारी पड़ी और अंततः आजाद हिंद फौज को अपने कदम पीछे खींचने पड़े।और इसके कुछ ही महीना बाद जापान परमाणु हमले की वजह से हार गया।
क्या सुभाष चंद्र बोस सालों बाद भी जिंदा रहे थे।
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज के लिए एक नया बेस की तलाश में थे। सोवियत रूस उसे समय अमेरिका और ब्रिटेन के साथ लड़ा था। लेकिन सोवियत रूस में कम्युनिस्ट आईडियोलॉजी जो कि दूसरे देशों से अलग थी इसी वजह से नेताजी ने अपना बेस वहां बनाने के लिए सोचा।
लेकिन सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सालों तक जापान के द्वारा किए गए मदद के लिए धन्यवाद देकर सोवियत रूस जाना चाहते थे। उस समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस वियतनाम में थे जहां से उनको हवाई जहाज का सफर करते हुए ताइवान पहुंचना था ताइवान से फिर मंचूरिया और मंचूरिया से जापान।
नेताजी का जहाज वियतनाम से 17 अगस्त 1945 को उड़ान भरता है लेकिन खराब मौसम होने के कारण उन्हें वियतनाम के दूसरे राज्य में लैंड करना पड़ता है।
अगली सुबह 18 अगस्त 1945 को जहाज ताइवान की तरफ रवाना होती है और ताईपे पहुंचती है। वहां इंजन को फिर से चेक किया जाता है और ईंधन डलवाया जाता है। आईपीसी जहाज मंचूरिया की तरफ रवाना हुआ लेकिन उड़ान भरने में कुछ ही मिनट बाद जहाज का इंजन खराब हो गया और जहाज सीधे जमीन से जा टकराया। सुभाष चंद्र बोस अपने साथी हबीबुर रहमान के साथ उस जहाज में थे और यह दोनों जहाज की पिछली हिस्से में बैठे हुए थे हादसे के बाद इन दोनों को भयंकर चोट लगी थी लेकिन जान नहीं गई थी।
लेकिन नेताजी का शरीर पूरा पेट्रोल से भर गया था और पीछे का दरवाजा नहीं खुल रहा था अपनी जान बचाने के लिए उन्होंने आगे के दरवाजे का सहारा लिया जहाँ पर चारों तरफ आज थी। जैसे ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस उसे दरवाजे से बाहर निकले उनके शरीर में आग पकड़ ली उनके साथी हबीबुर रहमान ने अपने कपड़े निकाल कर आग बुझाई लेकिन तब तक उनका शरीर काफी ज्यादा जल चुका था। जल्द ही उन्हें पास के एक हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया। और नेताजी ने अपनी आखिरी सांस इस अस्पताल में ली।
बहुत से राजनीतिक पार्टी राजनीति करने के लिए आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम लेती है, और यह दावे करती है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस उस हादसे से बच निकले थे।
लेकिन भारत सरकार ने इसके ऊपर कई बार जांच पड़ताल की और हर जांच में यही मालूम चला कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइवान के उसी अस्पताल में हो गया था। इलाज करने वाले डॉक्टर ने भी सुभाष चंद्र बोस की पहचान की थी।
सुभाष चंद्र बोस को किसने मारा?
साल 1953 में इंडियन इंडिपेंडेंस लीग ने अपनी तरफ से एक जांच करवाई थी जिसमें यह कहा गया था कि नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 को ही हो गई थी। लेकिन उसमें यह भी बताया गया था कि जापान की सरकार ने नेताजी को मरवाया है। की शुरुआत से ही जापान सरकार में कुछ ऐसे लोग थे जो कि नेताजी के खिलाफ थे।
साल 2017 में मोदी सरकार ने भी इसके ऊपर जांच पड़ताल करवाई थी और जिन देशों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का पाला रहा है उन सभी से अपने-अपने सरकारी दस्तावेज की छानबीन करने को कहा गया। और इन देशों में ऑस्ट्रिया, जर्मनी, जापान , सोवियत रूस,ब्रिटेन और अमेरिका शामिल थे।
ऑस्ट्रिया, जर्मनी,सोवियत रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने सुभाष चंद्र बोस से जुडी अपनी सभी फाइलें भारत सरकार के सामने रख दी,लेकिन जापान इकलौता देश था जिसने अपने पांच फाइलों में से सिर्फ दो फाइलें ही भारत के सामने उजागर किया। जिससे यह शक अब यकीन में बदलने लगा है।
सुभाष चंद्र बोस की जयंती।
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 उड़ीसा में हुआ था। उनके जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में जाना जाता है। 23 जनवरी नेताजी की 127वीं जयंती मनाया गया है।